कर्नल वी.पी. सिंह बेबह्र 'अफर'
रात्रि का अंतिम प्रहर हैरुक सकोगी? तेल दीपक का अगर घटने लगे तो दीप बाती शुष्क हो बुझने लगे तो और उद्वेलित पवन चलने लगे तो दिया मन का प्रज्वलित क्या रख सकोगी? रात्रि का अंतिम प्रहर हैरुक सकोगी?
प्रीति की बेला प्रबल आसक्ति होगी किन्तु असफलताओं की पुनरुक्ति होगी हृदय आशा किरण किंचित रिक्त होगी तृषाकुल अंतस क्या सिंचित रख सकोगीरात्रि का अंतिम प्रहर हैरुक सकोगी?
पथ पे विपदा के अनेको शूल होंगे काल-ग्रहप्रायः तेरे प्रतिकूल होंगे वासनाओं के नियम अनुकूल होंगे कठिन पल में सबल तन-मन रख सकोगी? रात्रि का अंतिम प्रहर हैरुक सकोगी?
राहों में शंकाओं के व्यवधान होंगे पीड़ा के पथ में अकथ आख्यान होंगे छल कपट के छद्म अनुसंधान होंगे लक्ष्य पर क्या दृष्टिसाधित रख सकोगीरात्रि का अंतिम प्रहर हैरुक सकोगी?
ग़ज़ल
हो रहा जो भी उसको होने दो, हो चुका दफ़्न अब तो सोने दो।
जिंदगी अपनी कैद से गोया, अब तो आज़ाद हमको होने दो।
कर सका मैं कहाँ गमे इज़हार, अब सुकूँ से लहद में रोने दो।
और हम हम ख़याल हो जायें, हमको नफ़रत के बीज बोने दो।
इक तसव्वुर ही मैने माँगा था, तुम हकीक़त न इसको होने दो।