ख़ामोशी तुम न समझोगे बयाँ हमसे नहीं होगा...

(मुसीबत ज़दा अवाम के सेंस ऑफ ह्यूमर को समर्पित) 


देश की दुर्दशा का कितना भी शोर मचाया जा रहा हो, लेकिन इस वक्त चौतरफा हास्यरस का जबर्दस्त माहौल है। रमन मिश्र ने परिदृश्य प्रकाशन से 'राष्ट्रभक्ति' की कविता वाट्सएप पर डाली है। यह कविता माखनलाल चतुर्वेदी की 'पुष्य की अभिलाषा' कविता की पैरोडी है। वैसे यह युद्धक विमान 'राफाल' पर केन्द्रित है। राफाल पर बड़े लतीफे बने हैं। मसलन मंडी के भाव की तर्ज पर कहा गया कि सादा राफाल 320 करोड़ और नीबू के साथ राफाल 1300 करोड़ संदर्भ सबको पता है कि कांग्रेस ने कम कीमत पर राफाल का सौदा किया था और फिर 'न खाऊँगा न खाने दूंगा' वाली सरकार ने इसका दाम 1000 करोड़ बढ़ा दिया। बहरहाल हमारे गृहमंत्री ने फ्रांस जाकर दशहरे के दिन शस्त्र पूजा के बहाने उसे पूजा। उस पर गलत ओम का चिन्हा बनाया। चकों के नीचे नींबू रखे। कविता उसी पर है। चाह नहीं लेमोनेड की बोतल में बेचा जाऊँ, चाह नहीं दाल मोठ में मिल शराबी को ललचाऊँचाह नहीं सलाद के ऊपर जहाँ-तहाँ छिड़का जाऊँ, चाह नहीं घर के किबाड़ पर लटक भाग्य पर इठलाऊँमुझे तोड़ लेना वनमाली उस रन वे पर देना तुम फैंक, मातृ भूमि की रक्षा करने जिस पथ उड़ते राफेल अनेकफेसबुक यूनीवसिर्टी कला विभाग के कलाकारों ने राफेल का चित्र भी बनाया है। उस पर बुरी नजर वाले तेरा मुँह काला, हॉर्नप्लीज जैसे ट्रक, टैक्सी, ऑटो-बस पर लिखे जाना वाला साहित्य गूदा गया। उस पर लटकते हुए मिर्च-नीबू, जूते-चप्पल के चित्र उकेरे गये। गोया यह कि विज्ञान के युग में इस अंधविश्वासी कर्मकाण्ड की जमकर आरती उतारी गयी। शोधकर्ता मोदी जी की एक बाइट खोज लाये और उसे वायरल कर दिया जिसमें वे एक कांग्रेसी नेता द्वारा निजी कार खरीदने पर नीबू आदि रखने की खिल्ली उड़ा रहे हैं। बहरहाल राफेल से देश में उत्साह कम और मनोरंजन ज्यादा हुआ। देश को आभारी होना चाहिए कि शिक्षा, चिकित्सा-बेरोजगारी, भुखमरी-महँगाई से घायल अवाम पर इस बहाने हँसी का छिड़काव तो किया। असल में यह फेसबुक कमाल का है। गांधी जी के तीनों बंदर इसमें काम से लगे हैं। जो फेसबुकी कांबो बंदर पर व्यस्त है वो न किसी की सुनता है, न किसी से बोलता है न किसी को देखता है- वह वाट्सएप पर मगन रहता है। साजिद हाश्मी वाट्सएप की अदाओं पर ऐसे फ़िदा हुए कि उन्होंने एक शानदार ग़ज़ल लिख मारी