व्यंग्य ...

हमें कोई मूर्ख नहीं बना सकता क्योंकि हम पहले से हैं। जो हुनर लोग बड़ी-बड़ी अकादमियों में तालीम और प्रशिक्षण के बाद हासिल करते हैं, वो हमें कुदरत ने वैसे ही दे दिया है। नैसर्गिक प्रतिभा सदैव थोपी हुई विद्या से बेहतर होती है। विधाता की इस मामले में हम पर विशेष कृपा रही। कबीर जब पैदा हुए थे तो जग हँस रहा था, वे रो रहे थे। अपन पैदा होते ही हँसने लगे और इसका कोई कारण नहीं था। मूर्ख व्यक्ति को हँसने के लिए किसी बहाने की आवश्यता नहीं होती। वह अकारण हँसता है। इसीलिए रोग उससे दूर भागते हैं। बुद्धिमान दुनिया के तनाव पालता है और उम्र भर किसम-किसम की बीमारियों को ढोता है। मूर्ख प्रसन्नचित्त और स्वस्थ रहता है। सेहत वाले महकमे के लोग चाहें तो मुझे ब्रांड एम्बेसडर बना सकते हैं। मानव जाति का समस्त इतिहास एक से एक मूर्खताओं से भरा पड़ा है। मूर्ख अगर मूर्खता नहीं करते तो इतिहासकारों के पास लिखने को क्या होता? मानव-जाति का इतिहास है क्या? यह रक्तरंजित युद्धों से अटा पड़ा है जो मूखों के अलावा और कौन कर सकता है। इतिहास बनाने का काम मूलतः मूर्खा का ही रहा, लिखने का काम अलबत्ता दीगर लोगों ने किया और वे भी थोड़े मूर्ख किस्म के थे। ये बात इतिहास पढ़ने वाले विद्यार्थी अच्छे से जानते हैं, क्योंकि ऐसा बोझिल और उबाऊ विषय कोई दूसरा नहीं होता। इतिहास के अलावा हमारा कला साहित्य- रंगकर्म भी मूख और मूर्खताओं के किस्सों से अटा पड़ा है। अंधेर नगरी का राजा मूर्ख नहीं होता तो क्या भारतेंदु ऐसी कालजयी रचना लिख पाते ? राग-दरबारी के सारे पात्र परम् विद्वान होते तो आज श्रीलाल शुक्ल को कौन पूछता? कुछ लोग बुद्धिमान होने का भरम सिर्फ इसलिए पाले हुए हैं क्योंकि मूर्खता की महान जिम्मेदारी बाकी लोगों ने अपने काँधों पर उठा रखी है। यह निरपेक्ष गुण नहीं है, बल्कि सापेक्षता के सिद्धांत पर जीवित है। वस्तुतः दुनिया में सभी लोग मूर्ख हैं, कोई कम है तो कोई ज्यादा।


मूर्खता की अपनी नैसर्गिक प्रतिभा और गुरु मूर्खानन्द जी के आशीर्वाद व आदेश से मैं मूर्ख सम्प्रदाय के मठ की स्थापना कर रहा हूँ। मठ में बुद्धिमानों का प्रवेश पूर्णतः वर्जित होगा। मूर्खता अन्धकार की तरह होती है, जो सर्वव्यापी है। अपनी आँखें मूंद लो तो क्या दिखाई पड़ता है? कुछ नहीं। जो आँख बन्द करने पर दिखता है वही आँखें खुलने पर भी। बाहर-भीतर सब एक। यही परम् सत्य है। विवेक की रोशनी में तरह-तरह की चीजें दिखाई पड़ती हैं, जो मानव-मन और मस्तिष्क को भ्रमित करती हैं। इसी से मोह-माया व्याप्ति है। जब बाहर और भीतर भी अन्धकार हो तो ईश्वर की सच्ची लगन लगती है। मन चंचल नहीं, स्थिर रहता है। सभी जानते हैं कि दुनिया मूखों से भरी पड़ी है। फिर भी थोड़े से बुद्धिमानों ने मिलकर मूखों को हमेशा मूर्ख बनाए रखा और कदम-कदम पर प्रताड़ित किया। यह समस्त जगत के मूख के जागने का समय है। मूर्खता, मूर्ख का सबसे बड़ा हथियार होता है। इस हथियार से वह बड़े से बड़े बुद्धिमान को परास्त कर देता है। बुद्धिमान से कोई प्रश्न करने पर वह भाँति-भाँति की उलटी-सीधी बातें करने लगता है। खुद भी भ्रमित होता है और औरों को भ्रमित करता है। मूर्ख साफ़ और सुस्पष्ट नजरिये वाला होता है। न कोई शंका, न संदेह। उससे कोई भी प्रश्न पूछो तो वह कहेगा 'पता नहीं जी, हम तो मूर्ख हैं। यह ब्रम्ह वाक्य अच्छे से अच्छे बुद्धिमान को चित्त कर देता है। सारी दिक्कतें दरअसल बुद्धिमान होने से ही उठानी पड़ती हैं। घर से लेकर दफ्तर तक बुद्धिमानी बोझ की तरह सर पर लदी होती है। घर में बीवी या पति और दफ्तर में बॉस इसी वजह से बुद्धिमान को पेरते हैं और मूर्ख अपनी मूर्खता को तमगे की तरह गले में टाँगकर मजे मारता है। बॉस के आदेश पर बुद्धिमान मातहत तर्क करके पर उनका कोपभाजन बनता है और प्रमोशन से वंचित रह जाता है। मूर्ख 'जी सर' कहता हैऔर कुछ नहीं करता है। बॉस भी सोचता है कि काम में ढीला है पर आज्ञाकारी तो है। एक पुरानी फ़िल्म में नायक, दासी के दोनों हाथों में कबूतर थमा जाता है। असावधानी से एक कबूतर उड़ जाता है। नायक लौटकर पूछता है कि कैसे उड़ गया तो दासी दूसरे को भी छोड़कर कहती है, 'ऐसे।' नायक दासी की मूर्खता पर मोहित हो जाता है और वह उसकी प्रेमिका बन जाती है। इस तरह दो मूर्ख आत्माओं का मिलन होता है, जो मूर्खता की वजह से ही सम्भव हो पाता है। वह अगर एयरो-डायनामिक्स का सिद्धान्त समझाने बैठ जाती तो ऐसी विदुषी दासी से कौन मूर्ख प्यार करता? मूर्खता सहजात मानवीय गुण है। प्रत्येक मनुष्य जब जन्म लेता है तो अज्ञानी ही होता है। किताबें उसे सहज प्राकृतिक गुणों से दूर लेकर जाती हैं। जैसे-जैसे वह पढ़ता जाता है, मन में सवाल उठते हैं। शंकाएँ बढ़ती जाती हैं। मनुष्य दिग्भ्रमित होता जाता है। रास्ता नहीं सूझता, दाएँ जाए या बाएँ। मूर्ख अज्ञानता की राह पकड़ता है, बिल्कुल सीधा। इधर न उधर, दाएँ न बाएँ। कोई शंका नहीं। इसलिए वह जल्दी अपनी मंजिल पर पहुँचता है। मूर्खा के विचार नहीं होते इसलिए उनमें अद्वितीय एकता होती है। बुद्धिमानों के विचार और अहम आपस में टकराते हैं, इसलिए वे कभी एक नहीं होते। मूर्ख सम्प्रदाय का विस्तार बहुत तेजी से हो रहा है। मूखों द्वारा मूखों को मूर्ख बनाने के अनेक औजार विकसित हो चुके हैं और एक दिन पूरी दुनिया में मूख का एकछत्र राज होगा। बुद्धिमान डेढ़ होशियार होते हैं। आप इसे एक शब्द 'मूर्खता' टिका दें। वह फौरन अपनी बुद्धिमानी दिखाने पर उतर आएगा। पहले शास्त्रों, वेदों और पुराणों को खंगालेगा और बताएगा कि किस-किस मिथकीय पात्र ने क्या-क्या मूर्खता की थी। फिर इतिहास के पन्नों में कूदेगा और राजाओ-सांमन्तों की मूर्खता के किस्से सुनाएगा। फिर ताजातरीन वैज्ञानिक शोध का हवाला देकर बताएगा कि मूर्ख क्यों मूर्खताएं करते हैं। अरे भाई! इतनी मेहनत किसलिए? हम मूर्ख तो पहले से स्वीकार कर रहे हैं कि हम जनम के मूर्ख हैं। जो बात हम पहले से मान रहे हैं उसे साबित करने के लिए इतनी उछल- कूद करने की मूर्खता कोई आला दर्जे का बुद्धिमान ही कर सकता है। आप अगर स्वयँ को बुद्धिमान समझ रहे हैं, तो आप सबसे बड़े मूर्ख हैं। ये बात और है कि आप मानते नहीं, पर हैं अपनी ही बिरादरी के। सत्य तक पहुँचने में समय तो लगता है। मूर्खता इंसान में अदम्य आत्मविश्वास का संचार करती है। अब तक आपको जो भी असफलता हाथ लगी है, सब बुद्धिमानी के फेर में है। बुद्धिमानी, इंसान का विवेक हर लेती है। वह स्वयं को बुद्धिमान समझते हुए एक के बाद एक मूर्खताएँ करता चला जाता है। यह बुनियादी गड़बड़ी होती है। इंसान को मूर्खता करनी है तो मूर्ख बनकर ही करनी चाहिए। मूर्ख सम्प्रदाय धर्म और जाति के बंधन को स्वीकार नहीं करता। यह मानव-मात्र को बाँटने की साजिश है। धर्म अफीम है तो जाति गांजा है। दोनों की पिनक बुरी है। इनकी झोंक में इंसान मूर्खता के अपने मूल धर्म को भूल जाता है और ज्ञानियों की भाँति बातें करने लगता है। यही वजह है कि मूर्ख सम्प्रदाय सिर्फ वर्ग चेतना पर भरोसा करता है। दुनिया में बस दो ही वर्ग हैं, एक मूर्ख और दूसरा बुद्धिमान। आपको अपने वर्ग को भली-भांति पहचान लेना चाहिए और अपने मूर्ख भाइयों के उत्थान के लिए निः स्वार्थ ढंग से काम करना चाहिए। हम वर्तमान में किसी भी राजनीतिक दल के नेतृत्व को भी स्वीकार नहीं करतेहमें छद्म-मूर्खता स्वीकार नहीं है। ये मूर्ख नहीं हैं, बल्कि चालाक लोग हैं। हम सभी असली मूखों को इनकी चाल समझनी चाहिए। जाति और धर्म की भाँति हम मूर्ख सीमाओं के बंधन को भी स्वीकार नहीं करते। हमारा नारा दुनिया के मूखों को एक करने का है। चूंकि हम दुनिया के मूर्खा को एक करना चाहते हैं इसलिए हमारी स्पष्ट राय है कि हम मूर्खा के बीच में कोई भेद नहीं होना चाहिए। हम इसके लिए किसी भी तरह के सैद्धांतिक बहाने को खारिज करते हैं। हम अल्ट्रा मूर्ख, एक्सट्रीमिस्ट मूर्ख, संसदीय मूर्ख, उदार मूर्ख वगैरह का झंझट न पालते हुए एक झंडे तले सिर्फ मूर्खतावाद के रस्ते पर चलेंगे और दुनिया का कोई भी बुद्धिमान हमारे बीच विभाजन के बीज नहीं बो पायेगा, क्योंकि हमारी मूर्खता में गजब की शक्ति है। मूर्खत्व पंथ स्वीकार करने के लिए, आप अपनी समस्त मूर्खताओं के साथ सादर आमंत्रित हैं।