गज़ले

हम लोग अगर जान का सौदा नहीं करते, दरया में उतरने का इरादा नहीं करते। फूलों के तहफ्फुज़ में लुटा देते हैं हम जान, कलियों को मसलने की तमन्ना नहीं करते। हर शख्स हमें लाइके तअजीम है लेकिन, हर शख्स की बातों पे भरोसा नहीं करते। वे फैज़ चिरागों से अँधेरे ही भले हैं, जो राज़ किसी का कहीं इफ्शा नहीं करते। वे फैज़ चिरागों से अँधेरे ही भले हैं, जो राज़ किसी का कहीं इफ्शा नहीं करते। करते नहीं हम अपने उसूलों से बगावत, दामन किसी मजबूर का मैला नहीं करते। मेहनत की कमाई पे गुज़र होता है अपना, गैरों से कभी कोई तकाज़ा नहीं करते।


कुछ गम नहीं जो टूट गया मैं बिखर गया, ख़ुश हूँ अमीरे शह का चेहरा उतर गया। इक आइना हूँ मेरा मुक़द्दर है किर्चियाँ, लेकिन तेरे सुलूक ने पत्थर का कर दिया। महरूमियों की धूप में जलता रहा हूँ मैं, खाकी बदन है ख़ाक, मगर दिल किधर गया। चेहरे पे है रिया तो हूँ अंदर से शादमाँ, मुझ में बसा हुआ था जो इंसान मर गया। फिर आ गया हूँ मैं तेरी महफ़िल में लौट कर, दिल पर लगा था ज़ख़्म जो कम्बख़्त भर गया। आ जाये मौत भी तो कोई गम नहीं मुझे, अब इस फ़रेबे जीस्त से दिल मेरा भर गया।


जो ख़ुद चिराग सा जले बशर वो इक फ़क़ीर है, हो मुफ़लिसी में पुर सुकूँ वो शख्स बा ज़मीर है। फ़रोग़ बख्शे बज्म को जो अपनी आबों ताब से, मिसाल उस की किस से दें जो ख़ुद ही बे नज़ीर है। तो क्या हुआ जो मिट गए नुकूश ख़ानदान के, मिटी नहीं जो आज तक वो हाथ की लकीर है। शबाब बिक रहा था यूँ तो हुस्न के दयार में, कोई गरीब ही रहा हुआ कोई अमीर है। नज़र से छू के जो खिला गया है दिल का ये चमन, उसी की सल्तनत हूँ मैं वही मेरा वज़ीर है। है सुब्ह का जमाल भी तेरे रुखे जमाल से, तेरे बदन का लम्स है कि ये तेरा असीर है।


दिल में कपट के आते ही लहजा बदल गया, उसका गुरूर खून का रिश्ता बदल गया। इक झूठ की लकीर में चहरा बदल गया, अच्छा हुआ जो आपका सपना बदल गया। वो चाहता था मेरा जनाज़ा उठे मगर, कुदरत का खेल देखिये मुर्दा बदल गया। ऐसी लगी है चोट कलेजे पे क्या कहूँ, दो ग़ज़ ज़मीन के लिये आक़ा बदल गया। जब से हुआ है जीनते अखबार मेरा नाम, हर घर में सारे शह्न के चर्चा बदल गया। 'वाहिद' तेरे नसीब में लिक्खी है मयकशी, जी भरके पी कि उम्र का शीशा बदल गया।