ख़ामोशी तुम न समझोगे बयाँ हमसे नहीं होगा...
(मुसीबत ज़दा अवाम के सेंस ऑफ ह्यूमर को समर्पित)  देश की दुर्दशा का कितना भी शोर मचाया जा रहा हो, लेकिन इस वक्त चौतरफा हास्यरस का जबर्दस्त माहौल है। रमन मिश्र ने परिदृश्य प्रकाशन से 'राष्ट्रभक्ति' की कविता वाट्सएप पर डाली है। यह कविता माखनलाल चतुर्वेदी की 'पुष्य की अभिलाषा' कविता की …
गज़ले
हम लोग अगर जान का सौदा नहीं करते, दरया में उतरने का इरादा नहीं करते। फूलों के तहफ्फुज़ में लुटा देते हैं हम जान, कलियों को मसलने की तमन्ना नहीं करते। हर शख्स हमें लाइके तअजीम है लेकिन, हर शख्स की बातों पे भरोसा नहीं करते। वे फैज़ चिरागों से अँधेरे ही भले हैं, जो राज़ किसी का कहीं इफ्शा नहीं करते। व…
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मेरे इन्क़लाबी दोस्त अतुल अंशुमाली
अतुल अंशुमाली तारकोल भरी रात की सड़क के एक ओर उग रही है दूब फैलाना चाहती है हरी घास का मैदान मेरे दोस्त क्या तुम अभी जिन्दा हो-- अभी कुछ देर पहले जलते टायरों के धुएँ ने एक घुटन और डर का माहौल बनाकर रखा था मैंने एक बच्चे को सहमा हुआ देखा मैंने एक आदमी को जलते हुए देखा मैंने एक महिला के साथ रेप होते…
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गीत और ग़ज़ल की ख़ुशबू...
कर्नल वी.पी. सिंह बेबह्र 'अफर'  रात्रि का अंतिम प्रहर हैरुक सकोगी? तेल दीपक का अगर घटने लगे तो दीप बाती शुष्क हो बुझने लगे तो और उद्वेलित पवन चलने लगे तो दिया मन का प्रज्वलित क्या रख सकोगी? रात्रि का अंतिम प्रहर हैरुक सकोगी? प्रीति की बेला प्रबल आसक्ति होगी किन्तु असफलताओं की पुनरुक्ति होगी…
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व्यंग्य ...
हमें कोई मूर्ख नहीं बना सकता क्योंकि हम पहले से हैं। जो हुनर लोग बड़ी-बड़ी अकादमियों में तालीम और प्रशिक्षण के बाद हासिल करते हैं, वो हमें कुदरत ने वैसे ही दे दिया है। नैसर्गिक प्रतिभा सदैव थोपी हुई विद्या से बेहतर होती है। विधाता की इस मामले में हम पर विशेष कृपा रही। कबीर जब पैदा हुए थे तो जग हँस …